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भारत में ऑलिव खेती एक सुनहरा अवसर

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परिचय

भारत में ऑलिव खेती धीरे-धीरे लोकप्रिय हो रही है, जो पहले एक विदेशी कृषि गतिविधि के रूप में मानी जाती थी। इस लेख में हम राज्यवार ऑलिव खेती की स्थिति, सरकारी सहायता, प्रशिक्षण केंद्र, और भविष्य की संभावनाओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे। इसके साथ ही हम यह भी जानेंगे कि इस क्षेत्र में पेशेवर रूप से निवेश करने पर लागत और लाभ के मार्जिन क्या हो सकते हैं।

राज्यवार स्थिति

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  1. राजस्थानराजस्थान ऑलिव खेती का प्रमुख केंद्र है। यहाँ की सूखी और अर्ध-सूखी जलवायु ऑलिव की खेती के लिए आदर्श है। प्रमुख जिलों में जैसलमेर, बारमेर और जोधपुर शामिल हैं। राज्य सरकार ने ऑलिव तेल मिलों और अनुसंधान केंद्रों की स्थापना की है, और किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए कई परियोजनाएँ शुरू की हैं।
  2. हिमाचल प्रदेशहिमाचल प्रदेश की ठंडी जलवायु और उच्च ऊँचाई ऑलिव की खेती के लिए उपयुक्त हैं। यहाँ के प्रमुख जिलों में चंबा और कांगड़ा शामिल हैं। राज्य सरकार ऑलिव खेती को बढ़ावा देने के लिए सक्रिय रूप से कार्यरत है और किसानों को नवीनतम तकनीकों के बारे में जानकारी प्रदान कर रही है।
  3. उत्तराखंडउत्तराखंड में भी ऑलिव खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है, विशेषकर देहरादून और नैनीताल जिलों में। यहाँ की मिट्टी और जलवायु की स्थिति ऑलिव की खेती के लिए अनुकूल है। राज्य ने किसानों के लिए विभिन्न योजनाएँ और सहायता कार्यक्रम शुरू किए हैं।
  4. पंजाबपंजाब, जो पारंपरिक रूप से गेहूं और चावल की खेती के लिए जाना जाता है, अब ऑलिव खेती की दिशा में कदम बढ़ा रहा है। यहाँ की उपयुक्त भूमि और सरकारी प्रोत्साहन के कारण, ऑलिव खेती के क्षेत्र में रुचि बढ़ रही है। राज्य सरकार इस क्षेत्र के विकास के लिए कई पहल कर रही है।
  5. गुजरातगुजरात में ऑलिव खेती का नया चलन देखनें को मिल रहा है, विशेषकर कच्छ और सौराष्ट्र जिलों में। राज्य सरकार इस क्षेत्र में नए प्रयोग कर रही है और ऑलिव खेती को मौजूदा कृषि प्रथाओं के साथ एकीकृत करने के तरीकों की खोज कर रही है।

सरकारी सहायता और पहल

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  1. राष्ट्रीय ऑलिव मिशनकृषि और किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया राष्ट्रीय ऑलिव मिशन ऑलिव खेती को बढ़ावा देने के लिए समर्पित है। यह मिशन ऑलिव बागान स्थापित करने, उन्नत उपकरण प्राप्त करने और ऑलिव तेल उत्पादन इकाइयों के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करता है। किसानों को पौधों और अवसंरचना विकास के लिए सब्सिडी मिलती है।
  2. सब्सिडी प्रोग्रामविभिन्न राज्यों में ऑलिव खेती के लिए सब्सिडी और वित्तीय सहायता उपलब्ध है। ये सब्सिडी नर्सरी पौधों, सिंचाई प्रणालियों और जैविक खेती प्रथाओं की लागत को कवर करती हैं। इससे प्रारंभिक निवेश की लागत कम होती है और किसानों को वित्तीय सहायता मिलती है।
  3. अनुसंधान और विकासभारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) और अन्य अनुसंधान संस्थान भारतीय परिस्थितियों के लिए उपयुक्त ऑलिव किस्मों के विकास में सक्रिय हैं। अनुसंधान का ध्यान उपज बढ़ाने, रोग प्रतिरोधकता में सुधार और स्थानीय जलवायु के अनुसार किस्मों को विकसित करने पर है।

प्रशिक्षण केंद्र और कौशल विकास

  1. कृषि विज्ञान केंद्र (KVKs)ऑलिव उगाने वाले क्षेत्रों में स्थित KVKs किसानों को प्रशिक्षण और तकनीकी सहायता प्रदान करते हैं। ये केंद्र ऑलिव खेती की तकनीकों, कीट प्रबंधन और पोस्ट-हार्वेस्ट प्रसंस्करण पर कार्यशालाएं आयोजित करते हैं, जिससे किसानों को नवीनतम जानकारी और तकनीकें मिलती हैं।
  2. राज्य कृषि विश्वविद्यालयकृषि विश्वविद्यालयों द्वारा ऑलिव खेती पर विशेष पाठ्यक्रम और प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रदान किए जाते हैं। ये संस्थान क्षेत्रीय परीक्षण और प्रदर्शन आयोजित करते हैं और किसानों को व्यावहारिक प्रशिक्षण प्रदान करते हैं।
  3. निजी प्रशिक्षण कार्यक्रमनिजी संगठनों और NGOs द्वारा किसानों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिसमें ऑलिव बागान प्रबंधन, विपणन रणनीतियाँ और मूल्यवर्धन पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। ये कार्यक्रम किसानों को उद्योग के विभिन्न पहलुओं पर प्रशिक्षित करते हैं।

लागत और लाभ के मार्जिन

लागत:

  • पौधों की लागत: एक हेक्टेयर में 400-500 ऑलिव पौधे लगाए जा सकते हैं। प्रति पौधा लागत लगभग ₹100-₹150 हो सकती है, जिससे कुल लागत ₹40,000-₹75,000 तक हो सकती है।
  • सिंचाई प्रणाली: ड्रिप सिंचाई प्रणाली की स्थापना की लागत लगभग ₹50,000-₹1,00,000 प्रति हेक्टेयर हो सकती है।
  • मिट्टी की तैयारी और उर्वरक: मिट्टी की तैयारी, उर्वरक, और अन्य कृषि कार्यों की लागत लगभग ₹20,000-₹30,000 प्रति हेक्टेयर हो सकती है।
  • संचालन लागत: वार्षिक संचालन लागत (जैसे कीट प्रबंधन, सिंचाई, और श्रम) लगभग ₹30,000-₹50,000 प्रति हेक्टेयर हो सकती है।

लाभ:

  • उपज: एक अच्छी देखभाल और प्रबंधन के तहत, एक हेक्टेयर से लगभग 2-3 टन ऑलिव फल की उपज हो सकती है।
  • ऑलिव तेल उत्पादन: 1 टन ऑलिव से लगभग 150-200 लीटर ऑलिव तेल का उत्पादन होता है। बाजार में ऑलिव तेल की कीमत ₹800-₹1,500 प्रति लीटर हो सकती है।
  • लाभ: ऑलिव तेल की बिक्री से प्राप्त लाभ सामान्यतः प्रति हेक्टेयर ₹2,00,000-₹4,00,000 हो सकता है, जिसमें लागत को घटाने के बाद शुद्ध लाभ बढ़ता है।

भारत में ऑलिव खेती का भविष्य

  1. बाजार वृद्धिभारत में ऑलिव तेल और ऑलिव्स की मांग बढ़ रही है, जो स्वास्थ्य लाभों के प्रति जागरूकता और बदलती आहार प्राथमिकताओं से प्रेरित है। इस बढ़ती मांग के साथ, ऑलिव खेती का विस्तार होने की संभावना है।
  2. तकनीकी उन्नतिनई कृषि तकनीकें जैसे ड्रिप सिंचाई, रोग-प्रतिरोधक किस्में, और सटीक खेती की तकनीकें ऑलिव उत्पादन को बेहतर बनाने में मदद करेंगी।
  3. निर्यात संभावनाएँभारतीय ऑलिव तेल और ऑलिव्स की गुणवत्ता मानकों और प्रमाणन के साथ, अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रवेश की संभावनाएँ हैं। निर्यात से उद्योग को लाभ हो सकता है।
  4. सततताऑलिव खेती सूखे और अर्ध-सूखे क्षेत्रों में एक स्थायी विकल्प प्रदान करती है, जो मिट्टी और जल प्रबंधन में योगदान करती है।

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