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पड़ोसी देश नेपाल एक बार फिर चर्चा में है. नेपाल में फिर से प्रदर्शन, आगजनी, तोड़फोड़ और हिंसा का दौर शुरू हो गया है. दो लोगों की मौत हो गई है और कई लोगों को गिरफ्तार किया गया है. प्रदर्शनकारी पुरानी राजशाही को बहाल करने की मांग कर रहे हैं. उनकी यह भी मांग है कि नेपाल को फिर से हिंदू राष्ट्र बनाया जाए. राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के कुछ नेता भी इस आंदोलन में शामिल हैं. नेपाल के पूर्व राजा ज्ञानेन्द्र शाह का भी प्रदर्शनकारियों को कही न कही समर्थन मिला हुआ है. इसी का नतीजा है कि आंदोलन को इतनी हवा मिली है. हांलाकि हालात धीरे-धीरे सामान्य हो रहे है, लेकिन कई सवाल अपने पीछे छोड़ रहे है.2007-08 में नेपाल में लोकतंत्र का उदय हुआराजशाही और हिंदू राज्य की स्थापना की मांग के पीछे बड़ी वजह राजनीतिक अस्थिरता है. नेपाल में पिछले 16 सालों में 14 सरकारें बनी हैं. विकास की रफ्तार काफी धीमी हो गई और भ्रष्टाचार का बोल-बाला है. बेरोजगारी और मंहगाई ने लोगों की कमर तोड़ दी है. 2007-08 में जब 240 साल पुरानी राजशाही खत्म करके नेपाल में लोकतंत्र का उदय हुआ था तो आम लोगों को बहुत आस थी. खासकर दूर दराज के पहाड़ी इलाकों मे रहने वाले लोगों को लगा कि उनतक भी विकास पहुंच पाएंगा. लेकिन हुआ उल्टा.कागजों पर लोकतंत्र तो आ गया पर जमीनी स्तर पर वह नहीं उतर पाया. रही सही कसर कई सरकारों के आने और जाने ने पूरी कर दी. इससे लोगों में खासी नाराजगी बढ़ी. कईयों को ऐसा लगा कि इससे अच्छा तो राजशाही ही थी जहां पर आम लोगों के काम हो तो जाते थे.80 फ़ीसदी आबादी हिंदूनेपाल की 80 फ़ीसदी आबादी हिंदू है, ऐसे में कईयों को लगता है कि नेपाल फिर से हिंदू राष्ट्र बन जाएगा. जेएनयू में प्रोफेसर एसडी मुनि कहते है कि नेपाल केवल 1962 से 1990 तक ही हिंदू राष्ट्र रहा. अब जो भी इसको लेकर आंदोलन हो रहा है उसका प्रभाव पूरे नेपाल में नहीं है. वह कहते है कि जहां कही भी एक धर्म के आधार पर सरकार बनी तो दूसरे समुदाय के लोग परेशान हो जाते है. श्रीलंका, बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसे कई देश इसके उदारहण है. वैसे भी नेपाल में लोकतंत्र आये कितना साल ही हुआ है. इतने कम सालों में राजशाही के तुलना में कही ज्यादा काम हुआ. सड़कें बनी है. शिक्षा का स्तर बेहतर हुआ है. लोगों के जीवन स्तर में सुधार हुआ है. नेपाल की मौजूदा कम्युनिष्ट सरकार कभी नहीं चाहेगी कि नेपाल में फिर से राजशाही या हिंदू राष्ट्र की स्थापना हो.  इन सबके बीच नेपाल के रिश्ते चीन के साथ और मजबूत होते जा रहे है. नेपाल को लगता है कि उसकी जितनी मदद चीन कर रहा है उतना भारत नहीं कर रहा है. चीन नेपाल के तराई इलाके में बड़े पैमाने पर मैंडरिन भाषा के ट्रेनिंग स्कूल खोल रहा है ताकि मधेशियों को लगातार बढ़ती हुई चीनी अर्थव्यवस्था में सस्ते मजदूर की तरह इस्तेमाल कर सकें. भारत पर निर्भरता कम करने के लिए नेपाल का झुकाव चीन की ओर ज्यादा रहा है. नेपाल ने चीन के साथ हर मौसम में सड़क संपर्क के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं. भारत के विरोध के बावजूद नेपाल चीन के वन बेल्ट वन रोड का हिस्सा बना. भारत की हमेशा शिकायत रही है कि भारत की चीन के साथ तनातनी होने पर भारत के पक्ष में नेपाल खुलकर खड़ा नहीं हुआ है. अब तो नेपाल चीन से हथियार भी खऱीद रहा है. चीन की कंपनियों के वो सारे महत्वपूर्ण कॉन्ट्रैक्ट दिए जा रहे है जो कभी भारत के कंपनियों के पास थे. यही नहीं कई बार ऐसा भी देखने में आया कि नेपाल भारत विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा देता रहा है. नेपाल की चुनावी राजनीति में भी भारत का विरोध एक अहम मुद्दा रहता है.  भारत और नेपाल के बीच रोटी और बेटी का रिश्ताहालांकि भारत और नेपाल के बीच रोटी और बेटी का रिश्ता है. लेकिन हाल के सालों में भारत और नेपाल के बीच दूरी बढ़ती जा रही है. तो वहीं चीन के साथ नजदीकिया बढ़ती जा रही है. यह अलग बात है कि अभी भी नेपाल का सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर भारत ही है. नेपाल का करीब 70 फीसदी सामान भारत से ही आता है. भारत के बाद नेपाल का सबसे अधिक व्यापार चीन से है. इसके बावजूद नेपाल को लगता है कि भारत की नीति विस्तारवाद की है. नेपाल में ऐसी धारणा बनाने की कोशिश भी होती है भारत अक्सर उसके आतंरिक मामलों में दखल देता रहता है. हालत ये है कि अब नेपाल 1950 की भारत- नेपाल शांति और मैत्री संधि में समीक्षा की मांग करता है. वैसे नेपाल चाहे तो यह कर सकता है इसमें भारत को आपत्ति नहीं है लेकिन कोई भी समझौता एकतरफा नहीं हो सकता. नेपाल विकास में तो भारत की मदद चाहता है पर सुरक्षा के मुद्दे पर वह खुद फैसला लेना चाहता है.गोरखा रेजिमेंट के कर्नल ऑफ द रेजिमेंट रहे लेफ्टिनेंट जनरल राकेश शर्मा कहते है कि इसमें भारत की थोड़ी लापरवाही रही. हमनें नेपाल की मदद तो की पर समय पर नहीं की जिससे थोड़े संबध बिगड़े. कुछ नीतियां ऐसी रही जिसने नेपाली लोगों के मन में भारत को लेकर संशय़ की स्थिति बनी. तो क्या अग्निवीर योजना की वजह से नेपाली लोगों का सेना में ना आना भी संबधों में खटास की वजह रही तो जनरल शर्मा कहते है कि ऐसा नहीं है. आम लोग तो चार साल की अग्निवीर योजना के जरिये सेना में भर्ती होना चाहते है पर वहां की कम्युनिष्ट सरकार ऐसा नहीं चाहती है. जिस वजह से लोग अब सेना में नेपाल से भर्ती होने के लिये नहीं आ पा रहे है. इसके बावजूद भारत और नेपाल के बीच सामाजिक और सांस्कृतिक संबध सदियों से है. यह सबंध आपसी शादी ब्याह , धार्मिक आस्था और संस्कृति से जुड़े है. अयोध्या के भगवान श्रीराम की शादी नेपाल के राजा जनक की पुत्री सीता से हुई थी. दोनों देशों के बहुसंख्यक लोग समान आस्था और दर्शन साझा करते है. देवी देवता भी एक ही है. बोलचाल की भाषा भी एक जैसी ही है. करीब 80 लाख नेपाली लोग भारत में रहते है तो छह लाख भारतीय लोग नेपाल में रहते है. भारत की नेपाल के साथ 1850 किलोमीटर की सीमा है जो पांच राज्यों से लगती है. भारत और नेपाल के बीच खुली सीमा है. आने जाने के लिये कोई वीजा की जरुरत नहीं पड़ती है. इन सारी वजहों से भले ही सरकार के स्तर पर दूरियां बढ गई हो पर दोनों देशों की आम जनता के बीच जो विश्वास और प्रेम का धागा है वह कभी भी टूट नही सकता है.

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