newswomen.in

Empowering Voices, Informing Minds

वक्फ (संशोधन) विधेयक : उद्धव ठाकरे के एक तरफ कुआं दूसरी तरफ खाई

1 min read

वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 पर शिवसेना (यूबीटी) क्या रुख अपनाएगी, इसे लेकर सस्पेंस बना हुआ है. यह विधेयक आज लोकसभा में पारित होने के लिए प्रस्तुत किया जाएगा. पार्टी इस मुद्दे पर दुविधा में है, क्योंकि अगर वह विधेयक का समर्थन करती है तो मुस्लिम मतदाता नाराज हो सकते हैं और यदि इसका विरोध करती है तो उसकी हिंदुत्ववादी संगठन की छवि को नुकसान पहुंच सकता है.महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने सोशल मीडिया पर उद्धव ठाकरे पर तंज कसते हुए कहा कि वह देखेंगे कि ठाकरे बाल ठाकरे के विचारों का सम्मान करते हैं या राहुल गांधी के तुष्टिकरण के रास्ते पर चलते हैं. इस बिल पर समर्थन या विरोध को इस तरह जोड़ने से ठाकरे की पार्टी असहज स्थिति में आ गई है.1980 के दशक से शिवसेना एक उग्र हिंदुत्ववादी विचारधारा वाली राजनीतिक पार्टी में परिवर्तित हो गई. 1984 के भिवंडी दंगों और 1992-93 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद हुए दंगों के दौरान पार्टी का मुस्लिम विरोधी रुख स्पष्ट रूप से दिखाई दिया. बाल ठाकरे ने खुले तौर पर स्वीकार किया था कि शिवसेना ने विवादित मस्जिद के विध्वंस में भूमिका निभाई थी.2003 में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व संभालने के बाद शिवसेना की मुस्लिम विरोधी बयानबाजी में कमी आई. अपने पिता के विपरीत उद्धव ने सार्वजनिक भाषणों में शायद ही कभी मुस्लिम समुदाय के खिलाफ अपशब्दों या धमकी भरी भाषा का इस्तेमाल किया हालांकि, उन्होंने यह जरूर कहा कि पार्टी हिंदुत्व की विचारधारा का पालन करती है और बाबरी मस्जिद विध्वंस में शिवसेना की भूमिका को गर्व से स्वीकार करती है.2019 में, उद्धव ठाकरे ने एक साहसिक कदम उठाते हुए कांग्रेस और एनसीपी के साथ महा विकास अघाड़ी (एमवीए) का गठन किया और इसके प्रस्तावना पर हस्ताक्षर किए, जिसमें कहा गया था कि गठबंधन धर्मनिरपेक्ष मूल्यों का पालन करेगा. कोविड-19 महामारी के दौरान, जब ठाकरे मुख्यमंत्री थे, तो सरकारी राहत कार्य मुस्लिम इलाकों में बिना किसी सांप्रदायिक भेदभाव के किया गया. इस कारण मुस्लिम समुदाय के बीच ठाकरे की छवि बेहतर हुई और लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों में मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में शिवसेना (यूबीटी) को अच्छा समर्थन मिला.अगर पार्टी इस विधेयक का समर्थन करती है, तो वह मुस्लिम मतदाताओं का समर्थन खोने का जोखिम उठाएगी, जो कि बीएमसी चुनावों को देखते हुए एक समझदारी भरा फैसला नहीं होगा. ऐसे में पार्टी एक मध्य मार्ग तलाशने की कोशिश कर रही है. दिल्ली में मीडियाकर्मियों से बात करते हुए, शिवसेना (यूबीटी) के नेताओं ने कहा कि वे इस विधेयक के पूरी तरह खिलाफ नहीं हैं, लेकिन वे इसके कुछ प्रावधानों को हटाने की मांग कर रहे हैं. यह स्पष्ट नहीं है कि पार्टी के सांसद मतदान में भाग लेंगे या सदन से वॉकआउट करेंगे.जीतेंद्र दीक्षित, एनडीटीवी में कंट्रीब्यूटिंग एडिटर हैं और इस लेख में लेखक के निजी विचार हैं.

Loading

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may have missed

Copyright © All rights reserved. | Newsphere by AF themes.