नए संसद भवन के उद्घाटन पर बहस: लोकतंत्र का उत्सव या राजनीति का विवाद?

प्रस्तावना: भारत में हाल ही में नए संसद भवन का उद्घाटन हुआ, जिसे भारतीय लोकतंत्र की मजबूत नींव का प्रतीक माना जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इस ऐतिहासिक भवन का उद्घाटन किया गया। हालांकि, इस अवसर पर जहां सरकार ने इसे लोकतंत्र का उत्सव बताया, वहीं विपक्षी दलों ने इसे लेकर कड़ा विरोध जताया, जिससे यह मुद्दा गहरे राजनीतिक विवाद में तब्दील हो गया।
उद्घाटन समारोह का विवरण: 28 मई 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नए संसद भवन का उद्घाटन किया। यह नया भवन अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस है और इसे भारतीय वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना माना जा रहा है। उद्घाटन के दौरान प्रधानमंत्री ने ‘सेंगोल’ (प्राचीन राजदंड) को संसद में स्थापित किया, जो भारत की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर से जुड़ा हुआ है।
विवाद का कारण:
- राष्ट्रपति की अनुपस्थिति: इस उद्घाटन समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की अनुपस्थिति पर विपक्षी दलों ने कड़ी आपत्ति जताई। उनका कहना था कि भारत के संविधान के अनुसार, संसद का प्रमुख राष्ट्रपति होता है, और इस प्रकार, उन्हें ही इस नए भवन का उद्घाटन करना चाहिए था। कांग्रेस, टीएमसी, आम आदमी पार्टी सहित 19 विपक्षी दलों ने इस समारोह का बहिष्कार किया।
- संविधान का उल्लंघन: विपक्षी दलों का तर्क था कि प्रधानमंत्री द्वारा उद्घाटन संविधान की भावना के खिलाफ है। उनके अनुसार, यह संवैधानिक परंपराओं का उल्लंघन करता है, जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया में राष्ट्रपति की भूमिका को नजरअंदाज करता है।
- राजनीतिकरण का आरोप: विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि यह केवल एक राजनीतिक स्टंट है, जिसका उद्देश्य सरकार की छवि को चमकाना है, जबकि इसमें वास्तविक लोकतांत्रिक मूल्यों का अभाव है। वहीं, सरकार ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि यह आयोजन भारत की स्वतंत्रता और लोकतंत्र का प्रतीक है।
सरकार का पक्ष: सरकार के अनुसार, यह नया संसद भवन भारत की विकासशील लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए आवश्यक था। संसद भवन की बढ़ती आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए यह निर्माण किया गया है। प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में इसे एक ऐतिहासिक अवसर बताया और कहा कि यह नया भवन भारत के भविष्य की नींव रखने वाला साबित होगा।