कहानी भारत के पहले पराओलिम्पिक स्वर्णपदक विजेता की
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मुरलीकांत पेटकर? जिनकी जीवन गाथा पर बनी है फिल्म ‘चंदू चैंपियन'”
मुरलीकांत पेटकर एक ऐसा नाम है जिसे सुनते ही भारतीय खेल इतिहास की एक प्रेरणादायक कहानी हमारे सामने आती है। वह न केवल भारतीय सेना के एक वीर सैनिक हैं, बल्कि एक ऐसे अदम्य खिलाड़ी भी हैं, जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों का सामना करते हुए अपने देश के लिए गर्व के क्षण प्रदान किए। उनके जीवन पर आधारित फिल्म “चंदू चैंपियन” जिसे मशहूर निर्देशक कबीर खान ने बनाया है।

फिल्म “चंदू चैंपियन” में मुरलीकांत पेटकर की भूमिका अभिनेता कार्तिक आर्यन ने निभाई है। कार्तिक आर्यन ने इस किरदार के लिए काफी मेहनत की है, ताकि वह पेटकर के संघर्ष, साहस और अदम्य भावना को बड़े पर्दे पर सजीव रूप में प्रस्तुत कर सकें। फिल्म में उनका प्रदर्शन देखने लायक होगा, खासकर जब वह मुरलीकांत पेटकर के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं और भावनात्मक क्षणों को दर्शाते हैं।
कौन हैं मुरलीकांत पेटकर?
मुरलीकांत पेटकर का जन्म महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव में हुआ था। बचपन से ही उन्हें खेलों में रुचि थी, लेकिन उनका जीवन तब बदल गया जब उन्होंने भारतीय सेना में एक सैनिक के रूप में शामिल होने का निर्णय लिया। 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान पेटकर गंभीर रूप से घायल हो गए। इस युद्ध में उनकी रीढ़ की हड्डी को भारी चोट पहुंची, जिससे उनकी शारीरिक क्षमताओं पर गहरा असर पड़ा।
उपलब्धियाँ:

युद्ध के बाद, जब कोई और व्यक्ति शायद हार मान लेता, मुरलीकांत पेटकर ने अपनी हिम्मत और साहस को अपना सबसे बड़ा हथियार बनाया। उन्होंने अपने खेल करियर को नए सिरे से शुरू किया और तैराकी में अपनी पहचान बनाई।
1972 में जर्मनी के हेडेलबर्ग में आयोजित पैरालिंपिक खेलों में, मुरलीकांत पेटकर ने 50 मीटर फ्रीस्टाइल तैराकी प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीता। यह भारत के लिए पैरालिंपिक्स में पहला स्वर्ण पदक था और पेटकर की इस उपलब्धि ने उन्हें एक राष्ट्रीय नायक बना दिया।
इसके अलावा, उन्होंने अन्य कई अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भी हिस्सा लिया और विभिन्न पदक जीते। तैराकी के अलावा, वह JAVELIN THROW और SHOT PUT जैसे अन्य खेलों में भी माहिर थे।

प्रेरणा का स्रोत:
मुरलीकांत पेटकर की कहानी उन सभी के लिए प्रेरणा है जो जीवन में कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि असली जीत केवल पदकों में नहीं, बल्कि उन संघर्षों में होती है जिन्हें पार करते हुए हम अपनी सीमाओं से आगे बढ़ते हैं।
मुरलीकांत पेटकर का नाम हमेशा भारतीय खेल इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा, और उनकी कहानी आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी।